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P. 39

ियी ऊिा ियी सकरण
                                                     ा



                           ु
           प्रातः काल की सनहरी वकरण ।
           जगा रही है एक उमग ।।
                               ं
           उत्साह , ऊजा ,प्रकाश ही है यह वकरण ।
                         क
                                               ं
           आशा की नयी वकरण बन आई है उमग ।।



                                                     सबह की रस्ि लायी है नया रग ।
                                                                                 ं
                                                      ु
                                                     सघष की नयी उम्मीद बन आई है उमग ।।
                                                      ं
                                                                                         ं
                                                          क
                                                                             े
                                                                           ं
                                                     प्रीवत - रीती क े गीत गाएग हम ।
                                                     ससार में हषोउल्लास लाएग हम ।।
                                                                               े
                                                      ं
                                                                             ं
                               ं
                                 े
            विश्वाश जगत में लाएग ।
                                    ं
                                      े
            मानि को मानि से वमलाएग ।।
                    ं
            सकल ससार को नया ऱूप द ेंगे ।
                                       े
                                      ें
            उत्साह और उमग से भर दग ।।
                                                    प्रकाश की नयी वकरण ।
                                                        े
                                                                       ं
                                                    लायगी एक नयी उमग ।
                                                                       ं
                                                    लायगी एक नयी उमग ।।
                                                        े
                                                                                           सरज स्कल रिाडी
                                                                                                 ू
                                                                                             ू
                                                                                                   े
                                                                                       ं
     िई उमर्ग िई उिा                           ा                                उमर्ग
                      ं
                                      ं
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                                                                                             े
                                                                                    ु
                                                                              ं
      नई उमग नई तरग नई उजा क े सग ,                                        उमग है कछ करन की,
                                            ं
                                     ु
                             ु
      नि भोर में अचवभत है सनहरी धप क े सग ।                               उमग है कछ बनान की,,
                    ं
                                                                                             े
                                                                              ं
                                                                                    ु
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                                        ू
                                क
                                                                            े
      सदर विश्व की कल्पना उजा से भरपर है ,                          जो सपन दख है उनको परा करन की,
                                                                                                    े
                                                                              े
                                                                                 े
                                                                                            ू
                                                   ू
                                                 े
      लगता है चाद वसतार जमीन पर न कोई हमस दर है ।                      समाज में नया बदलाि लान की,,
                 ं
                         े
                                                                                                 े
                                ं
                                                                                              े
      नि भोर है निीकरण है निाचल है ,                                      अपना अस्ित्व बनान की,
                                          ं
                                ू
                                                                            ं
                                                                                               े
                                                                                  ु
      उषा की लावलमा क े वलए सरज का आचल है |                             उमग है कछ नया करन की,,
                                    ृ
                                           े
                            े
      धरती अपनी तरुणाई लकर प्रकवत कर स्खलिाड,                             अपना इवतहास बनान की,
                                                                                              े
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                                                                              ं
                                                                                             े
                                                                                    ु
      इद्रधनषी रग आए बार-बार |                                            उमग है कछ करन की,,
                          ू
                        ृ
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                                                                                             े
                                                                                    ु
                                                                              ं
      चहु और दखो मातभवम हररत क्ावत आई , ,                                 उमग है कछ बनान की॥
           ं
                          ुं
      हरा रग वनखर गए सदर लाली आई ।
                   क
                                 क
      भारत क े कम िीरो और कणधार ,
             ं
                             ं
      नि उमग नि जोश क े सग करो
       ु
      दिनों का वनराधार ।
            ं
                                       ्
                             ं
      जय वहद , जय भारत , िद मातरम |।                                                      Anita  Class-8th
                               े
                                                                                        Suraj School Rewari
                                                                                                  39
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                                            िरि स्कल रवाडी
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